मनहूस मई रात
खुद को मरा पाया उसने
हर रोज़,झखझोर खुद को देख लेता है
और रोज़ ही,
खुद को मरा पाता है,
काटता है वक़्त,
मौत को गिनते, बार बार मारता है
हर बार ही, खुद को .
खुद को मरा पाया उसने
हर रोज़,झखझोर खुद को देख लेता है
और रोज़ ही,
खुद को मरा पाता है,
काटता है वक़्त,
मौत को गिनते, बार बार मारता है
हर बार ही, खुद को .
मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeletebahut shukriya
ReplyDeleteमौत को गिनते,
ReplyDeleteबार बार...
बहुत ही सुन्दर लिखा है...
मनीष, शुक्रिया... हालांकि मुझे लगता है कि बिना एडिट किये सीधे छाप नहीं देना चाहिए लेकिन आज कल इतना ही टाइम मिल पाता है
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