Tuesday, October 16, 2012

काटता है वक़्त

मनहूस मई  रात
खुद को मरा पाया उसने
हर रोज़,झखझोर खुद को देख लेता है
और रोज़ ही,
खुद को मरा पाता है,
काटता है वक़्त,
मौत को गिनते, बार बार  मारता है
हर बार ही, खुद को .

4 comments:

  1. मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

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  2. मौत को गिनते,
    बार बार...

    बहुत ही सुन्दर लिखा है...

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  3. मनीष, शुक्रिया... हालांकि मुझे लगता है कि बिना एडिट किये सीधे छाप नहीं देना चाहिए लेकिन आज कल इतना ही टाइम मिल पाता है

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