Thursday, October 4, 2012

झाड झंखाड़ स्वप्न एक .....01

उजाला बढ़ गया 
कल नींद साथ लाई,उजाला  
घनघोर उजाला
चमकदार, सफ़ेद, उजला, उजाला।
तुम पर साथ आ गए जैसे 
तुम आ ही गए साथ पर 
'आ गए जैसे' जैसी बात नहीं 
जैसे भरम हो मेरा 
तुम्हारे साथ ही आई एक परछाई, जैसे
 'जैसे ' कहना वाजिब है 
[न मेरे भरम का पता पक्का , न तेरे साथ की परछाई का ]
जैसे भरम हो मेरा ,तुम्हारे साथ ही,आई एक परछाई,जैसे 
लग पड़ी तुम गले मेरे,

और मै जलने लगा 

जलन से मेरे , जल न पाई परछाई 
अपने खुद से ढक रखा
छुपा रखा खुद से भी तुमने, परछाई 

चिपक  गई है तुमसे परछाई
नहीं कोई काम, मुझे परछाई से 
तुम  भी तो कहते हो, नहीं कोई काम तुमको, परछाई से 
पता नहीं मुझको
जगता कि सोता हूँ, खुद को ही छलता हूँ
देख देख खुद को ही,
जलता  दहकता हूँ
देख देख खुद को ही, हँसता हूँ,  हँसता हूँ 
अट्टहास 
हँसता हूँ 
हहाकर हँसता हूँ 
जलते हुए मुरख पर हंस कर बरसता हूँ 
हा हा हा हँसता हूँ 
झिम झिम बरसता हूँ,
भीगता नहीं हूँ 
तुम भीगते हो
नहीं भीगती है परछाई 

जलता बरसता हूँ 
हँसता हूँ 
अट्टहास 
    

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