Thursday, November 26, 2009

man nahi manata .

 मन नहीं मानता
कि ब्रह्माण्ड से परे सिफर केवल
सिफर से भी परे सिफर केवल
 मन नहीं मानता
सिफर पर जा कर रुकती होगी दुनिया
मन चाहता है
जीवन के अंत से भी जीवन ही सुरु हो.

         २
मन नहीं मानता
भुलावा है सारा जीवन
स्नेह, प्रेम सौहार्द्य भी विलीन हो जाते है
मन नहीं मानता
एकांत में ही ब्याप्त है सारी माया
मन चाहता है
जिवानानुकुल  कोलाहल ही मूल्य हो जीवन का.

No comments:

Post a Comment

१. पूछो राम  कब करेगा  यह कुछ काम । २. कर दे सबको  रामम राम  सत्य हो जाए राम का नाम  उसके पहले बोलो इसको  कर दे यह कुछ काम का काम । ३. इतना ...